कुचल सर दुश्मनो के मै मिलूंगा फिर तुम्हे जल्दी, सपथ उस डोर की तेरी नही मुझको भुलाती है, ठुनक कर रूठ जाना और फिर अठखेलियां करना, नही मै भूल पाता हूँ मुझे रह-रह रुलाती है, रहे तूँ ख़ैरियत से ही सदा संसार में अपने, लबों पर अब मिरे ये ही यहां अरदास आती है, तुम्हारे स्नेह की राखी बहन अब याद आती है, अभी घर आ नही सकता मुझे सीमा बुलाती है।