द्रोपदी मुर्मू सफलता की कहानी
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Draupadi Murmu Success Story In Hindi – हमारे देश की जनसँख्या 30 करोड़ से भी ज्यादा है और इतनी ज्याद जनसँख्या होने के साथ-साथ हमारा देश दुनिया का सबसे सांस्कृतिक विविध भी है जहा हर धर्म और हर नस्ल के लोग रहते है।
देश में इतनी ज्यादा व्यददता होने के बावजूद हमारे देश के संविधान में स्थिति की समानता और अवसर की बात कही गयी है लेकिन सही माईने में समानता तभी स्टैब्लिश हो पायेगी जब मुख्य धारा से कटे हुए लोगो को भी देश के प्रशासन और सरकार की महत्वपर्ण पोस्ट के लिए अप्पॉइंमेंट किया जायेगा और 2022 Presidential इलेक्शन में हमें बिलकुल ऐसी ही क्वालिटी देखने को मिली।
ऐसी क्वालिटी ना सिर्फ हमारे लिए गर्व का विषय है बल्कि दुनिया के सभी डेमोक्रेटिक कंट्री के लिए यह प्रेणना का एक श्रोत भी बन सकता है और बिलकुल इसी वजह से आज हम आपको हमारे देश के प्रेसिडेंट बनने वाली द्रोपदी मुर्मू की लाइफ और सक्सेस और पोलिटिकल करियर के बारे में बताएँगे।
द्रोपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक जनजातीय परिवार में हुआ था। इनके पिता और दादा दोनों पंचायती राज सिस्टम की पॉलिटिक्स से जुड़े हुए थे अपनी प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन कम्पलीट करने के बाद एक स्कूल टीचर के रूप में सबसे पहले इन्होने अपनी टीचिंग कर्रिएर की शुरुआत करी और इसी दौरान ओडिशा के रायरंगपुर में स्थित श्री औरोबिन्दो इंस्टिट्यूट में इन्होने Assistant Professor के रूप में काम किया।
इसके आलावा इन्होने गवर्नमेंट ऑफ़ ओडिशा के इरीगेशन डिपार्टमेंट में जूनियर असिस्टेंट के रूप में भी काम किया और इसके बाद पॉलिटिक्स में इनकी इंट्री हुयी।
1997 में इन्होने भारतीय जनता पार्टी को ज्वाइन किया और रायरंगपुर नगर पंचायत से कॉउंसलर के पोस्ट के लिए इलेक्शन लड़ी जहा से इन्हे इलेक्ट भी कर दिया गया और अगले दो सालो तक मुर्मू ने उसी पंचायत की चेयर पर्सन के रूप में जिम्मेदारी संभाली। पॉलिटिक्स में इनके एक्टिवनेस को देखते हुए इन्हे बीजेपी की अनुसूचित जनजातीय मोर्चा का नेशनल वॉइस प्रेसिडेंट बना दिया गया।
साल 2000 के ओडिशा असेंबली इलेक्शन में MLA के पद के लिए खड़े होकर अपने पोलिटिकल कॅरिअर को एक कदम और आगे बढ़ाया और रायरंगपुर असेंबली कोंस्टीटूएंसी से MLA के रूप में इन्हे इलेक्ट कर दिया गया।
मार्च 2000 से 2002 के बिच इन्हे कॉमर्स एंड ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के मिनिस्टर की जिम्मेदारी भी सौपी गयी और 2002 के बाद से इन्होने मिनिस्टरी ऑफ़ फिशरीज और एनिमल रिसोर्सेज डेवलपमेंट डिपार्टमेंट को भी संभाला। लेजिस्लेटिव असेंबली के मेंबर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मुर्मू के कामो को देखते हुए इन्हे नीलकंठ अवार्ड फॉर बेस्ट MLA से भी नवाजा गया।
इसके बाद 2004 में फिर दुबारा इन्हे MLA के रूप में इलेक्ट किया गया वही दूसरी तरफ 2006 से 2009 तक मयूरगंज डिस्ट्रिक के बीजेपी प्रेसिडेंट के साथ-साथ बीजेपी अनुसूचित जनजातीय मोर्चा के स्टेट प्रेसिडेंट के रूप में मुर्मू काम करती रही।
मुर्मू की पोलिटिकल लाइफ में सब कुछ सही चल रहा था लेकिन अचानक उनेक पर्सनल लाइफ में कुछ बहुत बड़ी परेशानिया आयी जिन परेशानियों ने उन्हें हदास कर दिया, साल 2009 में एक एक्सीडेंट की वजह से द्रोपदी मुर्मू के बेटे की डेथ हो गयी जिनकी वजह से इनके मेन्टल हेल्थ पर काफी असर पड़ा और ये काफी समय तक डिप्रेशन में रही।
इसी के कुछ समय बाद साल 2013 में इन्होने अपने दूसरे बेटे को खो दिया और कुछ ही महीनो बाद इनके हस्बैंड की भी मृत्यु हो गयी और इन घटनाओ के बाद किसी के लिए भी डिप्रेशन में जाना स्वाभिक है।
द्रोपदी के अनुसार अपने इस डिप्रेशन मेन्टल जोन से बाहर निकलने के लिए वो ब्रह्म कुमारी संस्था से जुडी जिससे इन्हे काफी मदद मिली और इस स्थिति से बाहर निकलने के बाद इन्होने जनता की सेवा करने की अपने लक्ष्य पर दुबारा काम करना सुरु किया और 18 मई 2015 को द्रोपदी ने झारखण्ड की गवर्नर के रूप में सपथ ली।
द्रोपदी का ये सपथ न सिर्फ इनके सामाज के लिए गर्व का विषय था बल्कि ये ओडिशा के पुरे जनजातीय सामाज के लिए भी गर्व का विषय था क्योकि द्रोपदी मुर्मू ओडिशा की पहली महिला जनजातीय थी जिन्हे गवर्नर के रूप में अप्पॉइंमेंट किया गया था।
इसके साथ ही मुर्मू झारखण्ड के गवर्नर के रूप में जिम्मेदारी संभालने वाली भी पहली महिला थी इस तरीके से गवर्नर के रूप में इनका सपथ लेना महिलाओ के लिए भी गर्व का विषय बना।
5 साल के टर्म के लिए गवर्नर बनने के बाद मुर्मू ने अपने इस टर्म को पूरा किया अपने कार्य काल के दौरान द्रोपदी ने कई ऐसे बिल्स को रेफ्यूज भी किया जिसे झारखण्ड विधान सभा में Approval मिल चूका था इसके साथ ही गवर्नर के रूप में कार्य रत रहते हुए द्रोपदी मुर्मू ने कोरोना के समय में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये अपने कई इनोसिएटिव को आगे बढ़ाया अपने कार्य काल के दौरान ही मुर्मू ने अन्नोउंस किया उनकी मृत्यु के बाद उनकी आँख को रांची के ही कस्यप मेमोरियल ऑय हॉस्पिटल में डोनेट कर दिया जाये।
और फिर द्रोपदी मुर्मू की डिप्लोमैटिक वर्क एथिक्स और विशनरी गोल्स को देखते हुए इन्हे प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया 2022 के इलेक्शन के लिए NDA की ओर से नॉमिनेट किया गया मतलब अब ये कहने में कोई सक नहीं है की द्रोपदी मुर्मू हमारे देश के अगली प्रेसिडेंट होंगी और देश के सबसे बड़े पद की जिम्मेदारी संभालने वाली वो पहली जनजातीय महिला भी होंगी।
खैर इससे पहले भी 2012 के प्रेसिडेंटल इलेक्शन में अनुसूचित जनजातीय कम्युनिटी से ही बिलोंग करने वाले पुर्नो अगीतोक संगमा को प्रेसिडेंट पद के लिए नॉमिनेट किया गया था लेकिन उनका नॉमिनेशन सत्ता धारी पक्ष की तरफ से नहीं था इसलिए उन्हें हार का सामना करना पड़ा द्रोपदी मुर्मू का भारत के प्रेसिडेंट के रूप में इलेक्ट किया जाना भारत में मौजूद समानता की व्यवस्था का अब तक का सबसे बड़ा सबूत है।
देश के सबसे बड़े पद तक जनजातीय कम्युनिटी की एक महिला का पहुंचना न सिर्फ जनजातीय कम्युनिटी को बल्कि महिलाओ को भी स्ट्रगल के इस दौर से गुजरने के लिए प्रेरित करेगा।
दोस्तों, ये थी हमारे देश की प्रेसिडेंट द्रोपदी मुर्मू की कहानी उम्मीद करता हूँ की उनकी ये कहानी आपको पसंद आयी होंगी और अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर कीजियेगा ताकि वो भी द्रोपदी मुर्मू की महानता से प्रेरित हो सके।
।।धन्यवाद।।
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