माँ का भूत कहानी

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माँ का भूत कहानी - Horror Story In Hindi

Bhutiya Horror Story In Hindi – यह कहानी है लक्ष्मी की जो सेठ बलदेव साहनी के घर की लक्ष्मी थी। लक्ष्मी के तीन भाई थे जो गाँव के शाहूकार थे तीनो के तीनो हट्ठे-कट्ठे और तंदरूस्त थे और लक्ष्मी अपने तीनो भाईओ की जान थी। जब लक्ष्मी 18 वर्ष की हुयी तो सेठ जी ने लक्ष्मी के विवाह के लिए घर में पंडित जी को बुलाया।

पंडित जी – जजमान लक्ष्मी बिटिया की कुंडली जिस युवक से मिल रही है वह एक बहुत ही साधारण परिवार का है।

सेठ – अरे उससे क्या फरक पड़ता है हम तो अपने बेटी को अपने घर पर ही रखने वाले है हमें तो घर जमाई चाहिए।

पंडित – लेकिन जजमान मुझे नहीं लगता ऐसा कुछ संभव है यह युवक घर जमाई नहीं बनेगा।

तभी सेठ जी की बेटी सेठ जी के पास आयी और उनके कानो में कुछ फुसफुसाई। उसकी बातें सुनकर सेठ जी के चेहरे पर मुश्कान आ गयी और सेठ जी मान गए और बोला ठीक है पंडित जी आप शादी की बात आगे बढाईये। कुछ महीनो में लक्ष्मी की शादी एक बहुत ही साधारण युवक विमल से हुयी। सुरु-सुरु में दोनों की अच्छी बन रही थी और विमल की माँ सरिता भी बहुत खुश थी एक दिन सोते वक्त लक्ष्मी ने विमल से बात की।

लक्ष्मी – सुनो जी ना इस घर में सोफा है और ना ही गद्देदार पलंग और ना ही टीवी। आप मेरे साथ मेरे पापा के घर चलिए ना वहां सब कुछ है।

विमल – नहीं लक्ष्मी, अब यही तुम्हारा घर है तुम्हे इसी घर में रहने की आदत डालनी होगी।

उस दिन के बाद लक्ष्मी हर छोटी-छोटी सी बात के लिए विमल से झगड़ा किया करती। उनके बिच बात इतनी बिगड़ गयी की अब लक्ष्मी कभी बेलन तो कभी बर्तन फेक-फेक कर विमल को मारती।

सरिता – विमल बेटा ये क्या है तुम दोनों ऐसे लड़ क्यों रहे हो।

विमल – माँ ये रट लगाए बैठी है की मैं भी इसके साथ इसके बाप के घर में जाकर रहू घर जमाई बनकर भला मैं ये कैसे कर सकता हं और इसीलिए हमारी रोज़ अंबड़ होती है।

सरिता – एक काम कर तू उसे अच्छे से समझा की अब यही उसका घर है।

अगले दिन फिर से लक्ष्मी विमल को अपने साथ घर चलने के लिए जोर डालने लगी।

लक्ष्मी – आप मेरे साथ मेरे घर चलिए आपको यहाँ गरीबो की तरह जीने की कोई जरुरत नहीं है मेरे पापा के पास सब कुछ है।

विमल – मैंने तुम्हे कितनी बार बोला है मैं घर जमाई नहीं बनना चाहता हूँ।

लक्ष्मी – अगर आप खुद से मेरे साथ घर नहीं चलेंगे तो मैं मेरे भाईओ से बोलकर आपको जबरदस्ती यहाँ से उठवा लुंगी।

बहु की ये बात सुनकर सरिता को अपने बेटे की चिंता सताने लगी।

सरिता – इसके तीनो भाई तो इतने शक्तिशाली है मेरे बेटे का क्या हाल होगा, ये मैंने क्या कर दिया इससे अच्छा तो किसी गरीब की बेटी से शादी करवा दी होती कम से कम कोई आफत तो नहीं आती।

अब सिर्फ बाबा जी ही मेरी मदद कर सकते है। सरिता बहुत दूर एक बाबा जी के पास गयी और उन्हें अपनी पूरी दुःख भरी दास्तान बताई।

सरिता – अब आप ही बताईये बाबा जी मैं अपने बेटे को बचाने के लिए क्या कर सकती हूँ।
बाबा – ये ताक़तवर इंसान ऐसे ही होते है हमेशा निर्बल को दबाना चाहते है अब सिर्फ गुफा में रहने वाली डायन ही तुम्हारी मदद कर सकती है सिर्फ वही तुम्हे ताक़तवर बना सकती है जिससे तुम अपने बेटे को बचा सकती हो।
सरिता – बाबा जी मुझे ये डायन कहा मिलेगी।
बाबा – वो उत्तरी दिशा में मिलेगी लेकिन उससे मिलने से तुम्हारे प्राण भी संकट में आ सकते है।
सरिता – अपने बेटे की जान बचाने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ।

सरिता उत्तरी दिशा में निकल पड़ी और गुफा तक पहुंचते- पहुंचते उसे रात हो गयी।

सरिता – कोई है यहाँ …

डायन – क्या … आज एक इंसान खुद यहाँ चल कर आया है वो भी मेरा खाना बनने।

सरिता – मैं आपसे मिलने आया हूँ।

डायन – मिलने ? मुझसे, वो भी खुद चलकर, बताओ-बताओ क्या बात है।

सरिता ने डायन को अपनी सुरु से कहानी सुनाई फिर डायन बोली।

डायन – उपाय तो है लेकिन बहुत कठिन है।

सरिता – मैं अपने बेटे को बचाने के लिए कुछ भी कर लुंगी।

डायन – तुम्हे मेरा श्राप अपने ऊपर लेना होगा जिससे मेरी सारी शक्तियाँ तुममे आ जाएँगी तब मैं आजाद हो जाउंगी और फिर तुम डायन बनकर यही इस गुफा में रहोगी और ना ही सूरज की रोशनी में बाहर निकल सकोगी क्योकि डायन की शक्तियाँ सिर्फ रात में ही काम करती है। क्या तुम्हे ये मंजूर है?

सरिता – विमल को बचाने के लिए अगर मुझे डायन भी बनना पड़े तो मंजूर है।

डायन ने कुछ जादू किया और डायन की सारी शक्तियाँ सरिता में चलती गयी और अब डायन आजाद होकर एक औरत बन गयी और सरिता डायन बन गयी थी। यहाँ पूरा दिन हो गया था विमल ने गाँव में जाकर अपनी माँ को ढूंढा लेकिन माँ कही नहीं मिली रात को वो घर पंहुचा तो फिर लक्ष्मी उसपर भड़क गयी ये सब सरिता अपनी शक्तियों से देख रही थी और फिर सरिता डायन के रूप में वहां पहुंची। सरिता को डायन के रूप में देखकर उसके पैरो से मनो जमीन खिसक गयी। सरिता जोर-जोर से हसने लगी। अब जैसे-तैसे रात को लक्ष्मी सो गयी और सुबह होते ही।

लक्ष्मी – अभी अपने भाईओ को बताती हूँ की आपने मुझे बेलन से मारा।

लक्ष्मी अपने पाव दरवाजे से बाहर निकाल ही रही थी की सरिता ने अपने हाथ लम्बे करके लक्ष्मी के पाव पकड़ लिए।

सरिता – अब तुम इस घर के बाहर बिलकुल भी नहीं जाओगी।

एक बार फिर से लक्ष्मी बेहोश हो गयी। अब जब भी लक्ष्मी कुछ बेतुका करने जाती थी तो सरिता बिच में आकर अपने बेटे को बचा लेती और लक्ष्मी घर से दुबककर घर के कोने ने बैठी रहती। विमल दिन रात अपनी माँ को याद कर के रोता।

विमल – तू कहा है माँ .. तू कहा चली गयी मुझे छोड़कर।

सरिता – बेटा विमल मैं यही हूँ तेरे पास लेकिन इस डायन के रूप में।

ये सब सुनकर विमल बहुत डर जाता है।

सरिता – डर मत बेटा मुझसे तेरा दुःख देखा नहीं जा रहा था इसलिए मुझे ये सब करना पड़ा।

ये सब पीछे खड़ी लक्ष्मी सुन रही थी तभी सरिता ने उसे देख लिया और अपनी शक्तियों से दीवार पर लटका दिया और लक्ष्मी से बोली।

सरिता – जा रही हूँ, लेकिन एक बात समझ ले मेरे बेटे को परेशान करने की भी तूने या तेरे घर वालो ने सोची तो मैं वह फिर आ जाउंगी।

लक्ष्मी – जी …जी …जी माँ जी अब मैं इन्हे कभी नहीं परेशान करुँगी ये जैसा बोलेंगे मैं वैसा ही करुँगी।

तभी तो कहते है माँ से बढ़कर इस दुनिया में कुछ नहीं, माँ एक वरदान है जो अपने बच्चो के लिए कुछ भी कर सकती है। दोस्तों हमें उम्मदी है की ये कहानी आपको पसंद आयी होगी ऐसी ही और भी कहानियाँ आप Motivation Ki Aag पर आकर देख सकते है।


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