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The Life of an Eagle From Birth to Death In Hindi – हर बाज़ की ज़िंदगी में बढ़ते उम्र की मोड़ पर एक ऐसा समय आता है जहा उसके सामने पहले दो रास्ते सरल और तुरंत समाधान देने वाले होते है और वही तीसरा रास्ता कठिन और पीड़ा देने वाला होता है लेकिन बाज़ पीड़ा चुनता है और यही से शुरू होता है बाज़ का पुनर्जन्म।
हमारे ज़िंदगी में कई ऐसे मौके आते है जब हमें परेशानियो का सामना करना पड़ता है। कई लोग तो जीवन में संघर्ष कर आगे निकल जाते है और कई अपने हालातो से हार मान कर खुद को ज़िंदगी के हवाले कर देते है। ऐसे में हमारी ज़िंदगी और हमारा खुद का कोई वजूद नहीं रहता। दुनिया उसी को सलाम करती है जो अपने कलाम खुद लिखते है सिर्फ इंसान ही नहीं कुदरत में हर प्राणी के साथ ऐसा होता है। तो आईये जानते है बाज़ के जीवन से जुडी आचर्यजनक किन्तु एक ऐसा सत्य जो हम सब को प्रेणना देगा।
बाज़ लगभग 70 वर्ष जीता है परन्तु अपने जीवन के 40 वे वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है। इस अवस्था में उसके शरीर के तीनो प्रमुख अंग बेअसर होने लगते है। पहला पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है और शिकार को पड़ने में कमजोर हो जाते है। दूसरा चोंच आगे की तरफ मुड़ जाती है और भोजन निगलने में मुश्किलें पैदा होने लगती है। तीसरा पंख भरी हो जाते है और सीने से चपकने से कारण पुरे खुल नहीं पाते है और उड़ाने सिमित कर देते है। भोजन ढूढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना तीनो प्रक्रियाएं अपनी धार खोने लगती है।
उसके पास तीन ही रास्ते बचते है या तो अपनी शरीर छोड़ दे या अपनी प्रवत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यागी हुए भोजन पर निर्भर हो जाये या फिर स्वयं को फिर से स्थापित करे। आकाश के साफ़ तौर से जाहिर बादशाह के रूप में जहा पहले दो रास्ते सरल और तुरंत समाधान देने वाले है वही तीसरा अत्यंत पीड़ादायी और लम्बा।
बाज़ पीड़ा चुनता है और स्वयं को फिर से स्थापित करता है वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है। एकांत में अपना घोसला बनाता है और तब शुरू करता है पूरी प्रक्रिया। सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार-मार कर तोड़ देता है अपनी चोंच से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं है पंक्षी राज़ के लिए।
अब वह इंतजार करता है चोंच के फिर से उग आने की और उसके बाद वह अपने पंजे भी उसी प्रकार तोड़ देता है और इंतजार करना है पंजो का फिर से उग आने का। नयी चोंच और पंजे आने के बाद वह अपनी भरी पंखो को एक-एक कर नोचकर निकालता है और प्रतीक्षा करता है पंखो की पुनः उग आने का। 150 दिन की पीड़ा और इंतजार और तब उसे मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान। इस पुनर स्थापना के बाद वह ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ 30 साल और जीता है।
आपने कई बार ये सुना होगा भगवान भी उसी की मदद करते है जो अपनी मदद खुद करता है आज आपको इसकी मिसाल मिल गयी होगी जैसे बाज़ संघर्ष करता है 150 दिन तक और भगवान उसका संघर्ष बेकार नहीं जाने देते उसको नयी ज़िंदगी देकर कुदरत हमें सिखाने बैठी है जैसे पंजे पकड़ के प्रतिक है, चोंच सक्रियता की और पंख कल्पना को स्थापित करते है।
इच्छा हालातो पर काबू रखने की, सक्रियता स्वयं की अस्तित्व की गरिमा बनाये रखने की, कल्पना जीवन में कुछ नए पन बनाये रखने की। हम में भी 40 तक आते-आते इच्छा, सक्रियता और कल्पना तीनो के तीनो निर्बल पड़ने लगते है। हमारा व्यक्तित्व ही ढीला पड़ने लगता है आधे जीवन में ही जीवन खत्म होने जैसा लगता है। उत्साह, आकांछा, ऊर्जा, निचे की ओर जाने लगती है हमारे पास भी कई विकल्प होते है कुछ सरल और कुछ पीड़ादायक।
हमें भी अपने जीवन के मजबूरी भरे अतिलचीनेपन को त्याग कर काबू दिखाना होगा बाज़ की पंजो की तरह, हमें भी आलश पैदा करने वाली वक्र मानसिकता को त्याग कर ऊर्जा से भरी सक्रियता दिखानी होगी बाज़ की चोंच की तरह, हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारी पन को त्याग कर कल्पना की आजाद उड़ाने भरने होंगी बाज़ की पंखो की तरह।
150 दिन ना सही एक माह ही बिताया जाये स्वयं को दुबारा स्थापित करने में जो शरीर और मन से चिपका हुआ है उसे तोड़ने और नोचने में पीड़ा तो होगी ही बाज़ तब उड़ाने भरने को तैयार होंगे इस बार उड़ाने और ऊँची होगी, अनुभवी होंगी और अनंत की ओर जाएँगी जीत तक जंग जारी रहेंगी।
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Bhut acchi story hai